संगोष्ठी का अवलोकन
इस कार्यक्रम में सरकारी अधिकारी, NGO, और विशेषज्ञ शामिल हुए। श्री राजेश अग्रवाल, सचिव, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (DEPwD) एवं मुख्य आयुक्त (दिव्यांगजन) (CCPD) मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। श्री एस. गोविंदराज, आयुक्त, विशिष्ट अतिथि रहे।
कार्यक्रम की प्रमुख झलकियाँ
कार्यक्रम की शुरुआत माधव साबले द्वारा मराठी प्रार्थना से हुई, जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद श्री प्रवीण प्रकाश अंबष्ठ (उप. CCPD) द्वारा किया गया। श्री विकास त्रिवेदी (उप. CCPD) ने सभी प्रतिभागियों और वक्ताओं का स्वागत किया तथा डॉ. गोविंदराज ने उद्घाटन भाषण दिया।
श्री राजेश अग्रवाल ने 30 वर्ष पूर्व जलगाँव, महाराष्ट्र की एक कुष्ठ कॉलोनी में अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि कुष्ठ के कारण छुआछूत जातिगत भेदभाव से भी बदतर है क्योंकि इसमें परिवार भी दूरी बना लेते हैं। उन्होंने शीघ्र पहचान, कानूनी सुधार और उपचार के बाद पुनर्वास के महत्व को रेखांकित किया।
श्री एस. गोविंदराज ने बताया कि आज भी भारत में 750 कुष्ठ कॉलोनियाँ मुख्यधारा से अलग-थलग हैं। उन्होंने कानूनी चुनौतियों का भी ज़िक्र किया और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता बताई।
डॉ. शिवासुब्रमण्यम ने बताया कि विश्व के कुल कुष्ठ रोग मामलों का 53% भारत में है। उन्होंने सामुदायिक आधारित पुनर्वास पर बल दिया। डॉ. शिवकुमार ने बताया कि यह एक कम संक्रामक रोग है, और 125 ज़िलों में अभी भी इसके मामले सामने आ रहे हैं। WHO के अनुसार, भारत 2030 तक शून्य स्वदेशी मामलों का लक्ष्य रखता है।
सुश्री निकिता सारा ने कहा कि समय पर पहचान होने पर यह रोग आसानी से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने इसे विकलांगता या विकृति नहीं माना और बताया कि जानकारी की कमी कलंक का मुख्य कारण है।
डॉ. पी. नरसिम्हा राव ने चिकित्सा पहलुओं को बताया और कहा कि यह जैविक रूप से अनूठा रोग है। उन्होंने बताया कि भारत, ब्राज़ील और इंडोनेशिया में यह अब भी चिंता का विषय है।
सुश्री शबनम खान ने अपनी प्रेरणादायक यात्रा साझा की। उन्होंने कुष्ठ और सामाजिक बहिष्कार से लड़ते हुए अपने परिवार की पहली स्नातक बनने का गौरव हासिल किया।
संगोष्ठी का समापन जागरूकता, शीघ्र पहचान और पुनर्वास के सामूहिक आह्वान के साथ हुआ।